तुम्हारे साथ पहाड़ी जगहें देखी है मैंने
और रेतीला समुद्र भी
और रेतीला समुद्र भी
इन जगहों पर तुम्हारा साथ
मुझे पृथ्वी सा विस्तार देता है
मन की भीतरी परतों में नया सूरज उग आता है
मैं बार- बार कहती हूँ, खुद से,
मैं बार- बार कहती हूँ, खुद से,
'तुम्हारा साथ मेरी सबसे कीमती , सबसे सुन्दर धरोहर है...'
आसमान की नीली चादर पर टंके तारों से बतियाया है
तुम्हारे साथ ,
और रात ने मुझमें से गुजरकर
नए नक्श गढ़े हैं
ऐसी ही रातें होती है जब मैं
हथेलियों में मुलायम ऊष्मा समेटती हूँ
नम रेत पर युगों तक वह रात नदी बनकर बहती है .
मन को सहलाते हुए चुपचाप गुजर जाती है कविता ,मन अब भी उसके स्पर्श को महसूस कर रहा है |
ReplyDeleteसाथ जिये हुए हर पल को कितनी सदियों तक सहेजे रहेंगे...पता नहीं
ReplyDeleteसाथ-साथ चलते ये पल मन को सौंदर्य देते हैं ,
ReplyDeleteपल को महकाते हैं ..
सुंदर ..
मन भी सुंदर हो गया मित्र...
सस्नेह
गीता पंडित