'मैं...तुमसे प्रेम करता हूँ'
मैं
तुमसे प्रेम करता हूँ इसलिए
तुम मेरा घर संभालो
मद्धिम आंच में सिंझी तरकारी और
भाप उगलती, नर्म चपातियाँ पकाओ मेरे लिए
--- पुरुष ने कहा, स्त्री ने सुना.
--- पुरुष ने कहा, स्त्री ने सुना.
मैं
तुमसे प्रेम करता हूँ इसलिए
तुम मेरे बच्चे संभालो
सही संस्कार और गुण बोओं उनमें
उन्हें दुनिया का सामना करना सिखाओ
मैं फख्र से कह सकूँ -- मेरी संतति हैं ये
--- पुरुष ने कहा , स्त्री ने सुना.
पुरुष ने कहा,
'सुनो, मैं तुमसे प्रेम करता हूँ इसीलिए कहता हूँ
तुम महफूज़ हो मेरे बनाये दायरों में
मत झांको , इस दहलीज़ के बाहर
बाहर की दुनिया में
अन्याय है , असमानता है , शोषण है'
स्त्री ने सुना यह भी
लेकिन इस बार, एक तिर्यक लकीर
स्त्री के अधरों पर खिंची थी.
मैंने पहली बार किसी कविता में स्त्री को तिर्यक रेखाएं खीचते देखा ,ये काम बहुत पहले हो जाना चाहिए था|ये एक बात इस कविता को महान बनाती है
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