Wednesday 29 June 2011

'एक दुआ: अप्पू, तेरे लिए'

'एक दुआ: अप्पू, तेरे लिए'

अप्पू!
तुझे शब्दों का उपहार देना चाहती हूँ...
तेरी अध्यापिकाएं, नाते- रिश्तेदार और जान- पहचान वाले
जब तेरी तारीफ के कसीदे पढते हैं
मैं गर्व से दोहरी हो जाती हूँ
शायद इसलिए कि
नौ माह गर्भ में रखकर
जो संस्कार मैंने तुझे देने चाहे
उनकी प्रतिभूति मुझे तुझमें नज़र आती है


मेरी नन्ही सी जान...
दुनिया में लाने के बाद,
जब तुझे पहली बार देखा था
सिंदूरी दूध सा रंग लिए...
आँखों की नमी बूँद बनकर
मेरे चेहरे पर बिखर गई थी
शब्दों की पहुँच से कहीं आगे था वह अहसास
*        *         *         *          *          *         *
समय रपटता गया घडी की फिसलपट्टी पर
तेरी नन्हीं- नन्हीं शरारतों में
मैंने अपना बचपन फिर जिया
अब आपस में कभी-कभार
अपनी भूमिकाएं बदल लेते हम
 मैं नन्ही सी बच्ची बन जाती
और... तू मुझे दुनिया का दस्तूर समझाता


अप्पू... मेरे बच्चे!
कभी-कभी सोचती हूँ
तेज़ रफ़्तार ज़िन्दगी की भागदौड़ में
अपनी प्रत्याशाओं के चलते मैंने
उम्र के बरसों को खींचकर तुझे वक़्त से पहले बड़ा
या  कहूँ कि दुनियावी अर्थों में समझदार तो नहीं बना दिया...
लेकिन फिर कभी छोटी-छोटी बातों पर
तेरा मचलना, जिद करना
मेरे इस डर को उड़नछू कर देता है
उम्र की सीढियां फर्लांगने की ज़ल्दबाज़ी तुझे नहीं है
तेरी सोंधी मुस्कान मुझे यह आश्वस्ति देती है


तू ऐसे ही रहना अप्पू...
संवेदनाओं से भरा और दिलखुश
कच्ची धूप सी तेरी मासूमियत
वक्त की आरी से छीजे नहीं
यही दुआ है मेरी
अप्पू...तेरे लिए


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