Wednesday 29 June 2011

'अपूर्ण अभिलाषाएं सपनों की रेत पर ही नई इबारतें लिखती हैं'...

'अपूर्ण अभिलाषाएं सपनों की रेत पर ही नई इबारतें लिखती हैं'

आजकल अक्सर होता है यह मेरे साथ
रात में, जब बिस्तर पर लेटती हूँ
आँखें बंद करते ही तुम आ जाते हो
मुझसे मिलने
शरारत-भरी मुस्कराहट बिखेरते,
धीमी आवाज़ में बातें करते हो इधर-उधर की
चाहते हुए भी कभी कह  नहीं पाए 
अनबोला सा ऐसा ही बहुत कुछ
तुम्हारी आँखें बतियाती हैं मुझसे
  
तमाम रात मेरे साथ रहते हो तुम
तलाशते हैं कभी वह मकान जिसे घर बना सकें
कभी किसी शादी के समारोह में शरीक हो जाते हैं
ना जाने क्यों  ...?
-और कभी कॉफ़ी का मग थामे
खिड़की के पास बैठकर बारिशें देखते बस यूँ ही वक़्त बिताते हैं हम.
रोज़मर्रा की आम सी जिंदगी अब हर रात
तुम्हारे साथ खुलकर जीती हूँ मैं
अभी उस दिन तुमने फरमाइश की थी
कोई अच्छी सी ड्रेस पहनने की
सारी रात तुम्हारी मनपसंद पोशाक ढूँढने की उधेड़बुन में ही कट गई
और...कल जब घर आये थे
बाबा ने दरवाज़ा खोला था
उन्हें देखकर अचकचा गए थे तुम
फिर थोड़ा संभलकर मेरे बारे में दरियाफ्त किया
बैठक में मुझसे बातें तो की
लेकिन दरम्यान कहीं औपचारिकता पसर गई थी
नज़दीक होते हुए भी दूर रहने की खलिश
परेशान करती रही मुझे रात भर
सुबह आँख खुलने तक यह कसमसाहट तारी रही.

एक बात कहूँ...
ज़िन्दगी की किताब को तुम्हारे साथ पढना अच्छा लगता है मुझे
सपनों में ही सही
मेरी रातों में तुम्हारी मौजूदगी
दिन-भर नए कपड़े की खुशबू सी मुझसे लिपटी रहती है

मेरा ख्याल है, सपने ज़िन्दगी से ज्यादा सुन्दर और खुशगवार होते हैं
क्योंकि अपूर्ण और अतृप्त अभिलाषाएं
सपनों की रेत पर ही नई इबारत लिखती हैं...!!!

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