Wednesday 29 June 2011

' मन:स्थिति'

'मनःस्थिति'


हर दिन का अपना अलग स्वभाव होता है...
दिनों के बदलते मिजाज़ का अक्स महसूस किया है मैंने
कितनी ही बार...


बादलों की चादर में से सूरज कभी-कभार मुँह निकलता है
और दिन  कुछ खिन्न सा हो जाता है
मैं खुद पर बेवजह झल्लाती रहती हूँ
खिड़की-दरवाज़े खोलने पर भी जब यह खीज कम नहीं होती
तो कोसे, नमकीन पानी से चेहरा धो लेती हूँ ...


कभी फीकी और उदास रंगत लिए दिन लिहाफ में से झांकता है
और फिर बिस्तर में दुबक जाता है
उन दिनों में रोज़मर्रा के काम भी टाल देती हूँ
किताबें आवाज़ देती हैं तो अनसुना कर देती हूँ
मेहँदी हसन या जगजीत सिंह की उदास आवाज़ में भीगी ग़ज़लें ही
मन के रीतेपन में कुछ सुकून भरती हैं...

एक बार फिर, दिन अपना लिबास बदलता है
चटख, खुशनुमा रंगों की पोशाक पहनकर मेरे सामने आ धमकता है
इसी खुशनुमा दिन को मैं कविता में समेटती हूँ और डायरी में टांक देती हूँ...


---ऋतुपर्णा मुद्राराक्षस 

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