Wednesday, 29 June 2011

''कुछ कहना चाहेंगे आप ?"

'कुछ कहना चाहेंगे आप ?'
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स्त्री को बतलाने का शौक है
धूप का टुकड़ा मचलता है जैसे
देखकर अपनी परछाईं पानी में
स्त्री के ज़हन में कुलबुलाते हैं शब्द
बाहर आने को हमेशा बेचैन,

बतरस के उत्प्रेरक ने
स्त्री को कई उम्दा दोस्त बख्शे
औरतें भी, आदमी भी,
उम्र की जद से दूर,
सोच और विचारों की एकरूपता ही
-स्त्री के मुतल्लिक,
दोस्त बनाने की इकलौती शर्त होती
स्त्री के जीवन का विस्तीर्ण अंश रहे
इन दोस्तों में कुछ तो, शब्दों के पुल पर
चलकर ही स्त्री तक पहुँचते.
'रु-ब-रु एक दूसरे को जानना,
प्रेमियों के लिए ज़रूरी है, दोस्तों के लिए नहीं.'
स्त्री कहा करती.

दोस्तों की इस फेहरिस्त में
उसका नाम भी था
हालाँकि, निजी तौर पर स्त्री उसे नहीं जानती थी
फ़ोन पर भी महज़
दो ,या शायद तीन मर्तबा बात हुई थी
चेहरा, यकीनन अजनबी ही था
लेकिन, स्वर में बेलौस अपनापन
बौद्धिकता की गरिमा से भरे शब्द
स्त्री को आह्लादित कर जाते
इस आह्लाद में प्रेम-व्रेम का तत्व नहीं
दोस्ती की ऊष्मा पसरी रहती
- या कि  स्त्री को ऐसा प्रतीत होता
क्योंकि उवाचित शब्दों की चौहद्दी से परे झांकना
स्त्री को अतार्किक और अनर्थक लगता.

फिर एक दिन, अलसुबह, फ़ोन घनघनाया,
स्क्रीन पर उसका नाम चमक रहा था
अचरज और खीझ की मिली-जुली लकीरें
स्त्री के चेहरे पर खिंच आईं
फ़ोन उठाने पर, दूसरे छोर से आती आवाज़ में
जानी-पहचानी गरमाहट नहीं है
बस, नश्तर की तरह चीरता हुआ ठंडापन
कानों को सुन्न करता जा रहा है
खुदाया, यह क्या? वही आदिम सोच,
उसके साथ अन्तरंग होने आमन्त्रण है
बेहद सपाट अंदाज़ में
गोया, कह रहा हो
चलो, साथ कॉफ़ी पिएँ!
शीराज़ा बिखर रहा है किरच-दर-किरच
मज्जा तक फैलती पीड़ा चुभ रही है 

फ़ोन पटकने के बाद, स्त्री देर तक सिर धुनती है
पुरुष और स्त्री के संबंधों का अंतिम आयाम
बिस्तर ही क्यूँ ?
इस अनुत्तरित प्रश्न पर कुछ कहना चाहेंगे आप ?

--- ऋतुपर्णा मुद्राराक्षस

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